विकास के लिए पर्यावरण संरक्षण-एक चुनौती

विकास के लिए पर्यावरण संरक्षण-एक चुनौती

हिमाचल जनादेश, चम्बा (ब्यूरो)

आज दुनिया वैज्ञानिक और तकनीकी विकास की चरम सीमा पर है। यह आवश्यक भी है क्योंकि बढती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बडे़ पैमाने पर साधनों और संसाधनों का विकास अत्यंत आवश्यक है। विकास के कई आयाम है और सभी प्रकार के साधनों व संसाधनों की पूर्ति के लिए मानव पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर करता है।

वर्तमान समय में विकास के लिए और मानव जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रकृति के साथ अवैज्ञानिक ढंग से किया जा रहा खिलवाड़ निश्चय ही एक गंभीर चुनौती बन गईं है। आलम यह है कि बडे़ पैमाने पर पेड़ों की कटाई व पहाडों का कटाव प्रकृति के स्वरूप से घोर खिलवाड़ कर रहा है।। परिणाम स्वरूप असमय बर्षा व भूस्खलन से मानव जाति के अस्तित्व को खतरा पैदा हो रहा है।

वह विकास जो मानव जीवन जीने में ही रोड़ा बन जाए आखिर किस हद तक न्यायोचित हो सकता है यह अत्यंत चिंतनीय विषय है। आज दिन घटित हो रही अप्राकृतिक घटनाओं से मानव जीवन निस्संदेह खतरे में पड़ गया है। विकास के साथ जुड़े लोगों, शासन व प्रशासन को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए।

प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके और वैज्ञानिक ढंग से सभी विकासात्मक कार्यों को अंजाम दिया जाना अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि प्रत्येक मुश्किल का सामना समाज के मध्यम और आम जनता को ही करना पड़ता है।। उच्च वर्ग साधनसम्पन लोगों के पास काफी विकल्प उपलब्ध होते हैं जिससे उन्हें किसी भी प्रकार की आपदा या प्राकृतिक घटनाओं का कोई फर्क नहीं पड़ता।

मानव जीवन अनमोल है और हर विकास कार्य में मानव जीवन को सर्वोच्च स्थान दिया जाना चाहिए। आवश्यकता इस बात की है कि शासन और प्रशासन मात्र कुछ लोगों की भलाई के बारे में न सोच कर जनमानस की भलाई के लिए कृतसंकल्प व प्रतिबद्ध हो। इसके लिए सूझबूझ और इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है।। तभी विकास के लिए प्रकृति के साथ सामंजस्य और मानव हित सिद्ध हो सकते हैं।

विक्रम वर्मा।
स्वतंत्र लेखक, चम्बा हि.प्र।

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